व्याख्यान / संस्कृत से सीधे हिंदी में तब्दील नहीं हुई हमारी भाषा, ब्रज भाषा है बीच की कड़ी

एजुकेशन डेस्क. सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में इटैलियन स्कॉलर रोसीना पास्तोरे ने गुरुवार को 11वीं शताब्दी में लिखे संस्कृत के नाटक प्रबोधचंद्रम पर हिंदी में व्याख्यान दिया। स्विट्जरलैंड के लूजेन विश्वविद्यालय में भारतीय दर्शन विभाग की स्कॉलर रोसीना ने बताया- ब्रजवासीदास द्वारा लिखा गया नाट्य प्रबोधचंद्रम संस्कृत में भले ही था, लेकिन इस पर भरतमुनि के नाट्य शास्त्र का प्रभाव नहीं था, बल्कि इनके नाट्य लेखन में तुलसीदास की रामचरित मानस का प्रभाव अधिक नजर आता है।


11वीं सदी में संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम की व्याख्या ब्रजवासीदास ने 17वीं शताब्दी में की थी। ब्रजवासीदास ने असल में ब्रज भाषा में ही प्रबोधचंद्रम की व्याख्या की है, क्योंकि उस दौर में ब्रज हिंदी का चलन पूरे भारत में था। आज जो हिंदी भाषा हम बोल रहे हैं, वह संस्कृत से सीधे हिंदी में नहीं तब्दील हुई, बल्कि पहले ब्रज भाषा बनी और उसके बाद हिंदी भाषा बनी।


रोसीना ने हिंदी को अपने शोध का विषय क्यों चुना, इस पर वह कहती हैं- मैंने 10वीं में पहली बार हिंदी पढ़ी और उस वक्त एक बॉलीवुड फिल्म देखी थी। फिल्म देखकर मेरा इंट्रेस्ट हिंदी में बढ़ा और फिर मैंने इटली की नेपल्स यूनिवर्सिटी से हिंदी भाषा में बीए और एमए किया। वर्तमान में शांतिनिकेतन से हिंदी की पढ़ाई कर रही हूं।


रोसीना पास्तोरे ने, भारतीय सरल और सहज हैं, जैसे इटली या दुनिया के अन्य किसी देशों के लोग। यही वजह है कि 2012 में पढ़ाई पूरी कर वापस लौटने के बाद भी मैंने दोबारा भारत में आकर पढ़ने का मौका ढूंढ़ा।